Satna आजीविका के तलाश में एक युवक ने मुंबई के होटल में काम किया। इसके बाद एक प्राइवेट फाइनेंस कंपनी में नौकरी कर ली। यह सब नहीं भाया तो घर पर ही कपड़ों की दुकान खोल ली। यहां पर भी किस्मत की लकीरों ने साथ नहीं दिया तो, युवक ने कड़कनाथ के चूजे पाल लिए। यहां उसकी किस्मत को ऐसी किक मिली की जिंदगी ही बदल गई। यह हकीकत है सतना-कटनी के बॉर्डर में बसे झुकेही गांव के युवक विपिन शिवहरे की। घर की माली हालत को देखकर बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद ही विपिन नौकरी की तलाश में मुंबई निकल गए। यहां उनके गांव के दोस्त ने एक होटल में नौकरी लगवा दी। काम करते कुछ दिन बीते थे कि विपिन गांव चले आए। यहां पर कुछ दिन रहे और फिर दुकान खोल ली। दुकान नहीं चली तो वापस मायानगरी पहुंच गए, लेकिन गांव की माटी ने उन्हे फिर एक बार अपनी ओर खींच लिया।
लॉकडाउन में आया वापस
विपिन ने 'द सूत्र' को बताया कि वर्ष 2011 में बारहवीं पास करने के बाद मुंबई के एक होटल में काम करने लगा। यहां पर पहले 1600 रुपए महीने की तनख्वाह मिलती थी। इसके बाद 5400 रुपए हो गई। ढाई साल काम करने के बाद उसी होटल में 8400 रुपए मिलने लगे थे। लेकिन मन नहीं माना और गांव आ गया। कटनी में कपड़े की दुकान डाली वह भी नहीं चल सकी तो गांव में दुकान शिफ्ट कर दी। इसके बाद फिर मुंबई निकल गया। यहां तब एक प्राइवेट फाइनेंस कंपनी में काम करने लगा। अंग्रेजी बेहतर होने और हिसाब किताब में परफेक्ट होने पर 40 हजार महीने की तनख्वाह हो गई और रहना-खाना भी मुफ्त हो गया। इसके बाद भी मन नहीं लगा और लॉकडाउन के बीच गांव आ गया।
छह साल पहले पांच दोस्तों ने बनाया था प्लान
कड़कनाथ की इकाई लगाने की योजना कोई आज की नहीं है। विपिन और उसके चार अन्य मित्रों ने मिलकर इस पर छह साल पहले भी बकायदा चर्चा कर योजना बनाई थी लेकिन मूर्तरूप में नहीं दे पाए। विपिन बताते हैं कि वर्ष 2016 में कड़कनाथ की इकाई लगाने के लिए अंकित बड़ेरिया ने प्लान बनाया था। इस पर काफी चर्चा हुई लेकिन आपस में एक- दूसरे का सहयोग नहीं कर पाए। अंत में इस आइडिया को ड्रॉप कर दिया गया लेकिन मैंने अपनी माली हालत को देखकर इस आइडिया पर काम किया और आज आप देख सकते हैं कि महीने के लाख रुपए कहीं नहीं जा रहे। रही बात मुनाफे की दो पचास से साठ हजार का है।
विदेशों से आ रही डिमांड
विपिन ने अपने कड़कनाथ को फेसबुक और यूट्यूब के माध्यम से प्रचार कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि उन्हे विदेशों से भी सप्लाई के ऑर्डर मिल रहे हैं। विपिन बताते हैं कि 52 हजार रुपए से कड़कनाथ की इकाई शुरू की थी उनकी पहली कमाई 500 चूजे बिके थे और 42 हजार रुपए मिले थे। इसके बाद तो तांता लग गया। फिर तेलंगाना से एक पुलिस वाले आए थे 400 चूजे ले गए । एक डिमांड बहरीन से भी आई थी उन्होंने एक लाख रुपये से अधिक का पेमेंट किया था।
सरकारी इमदाद नहीं फिर भी खुद की हैचरी
विपिन को अब तक कोई सरकारी मदद नहीं मिली है। वह बताते हैं कि बड़े भाई ने एक बार बिजनेस स्टार्ट करने के लिए पैसा दिया था इसके बाद से मैंने मदद नहीं मांगी। इन्ही कड़कनाथ को बेच कर आज खुद की दो-दो हैचरी मशीन लगा रखी है। इस हैचरी में एक बार में 800 से अधिक अंडों की हैचिंग की जा सकती है। जबकि फार्म किराए पर है। इसके लिए महीने के 15 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं।
सरकारी तौर पर मझगवां और उचेहरा में शुरुआत
झाबुआ के नस्ल का कड़कनाथ सतना जिले में सरकारी स्तर पर भी लाया गया था। करीब 6 साल पहले जिले के दो जनपदों में इसकी शुरूआत भी हुई थी। उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने द सूत्र से बातचीत में बताया कि वर्ष 2016 में मझगवां और उचेहरा के गांव में कड़कनाथ की इकाई शुरू की गई थी। यह कुपोषण से लडऩे में सहायक है। हालांकि विपिन शिवहरे ने निजी स्तर पर काम कर रहा है। विभाग उसे प्रोत्साहित कर रहा है।